19/07/2016

गुरु पुर्णिमा के दिन कई पारंपरिक रूप से चल रहे संस्थानो मे आज भी गुरु का सम्मान किया जाता है,उसी तरह अंकुर विद्यालय ने अपनी परंपरा को बरकरार रखते हुए मनाया गुरुपू्र्निमा का त्योहार....

गुरु पुर्णिमा के दिन कई पारंपरिक रूप से चल रहे संस्थानो मे आज भी गुरु का सम्मान किया जाता है,उसी तरह अंकुर विद्यालय ने अपनी परंपरा को बरकरार रखते हुए मनाया गुरुपू्र्निमा का त्योहार....
गुरु की महिमा से इतिहास एवम आध्यात्म भरा पड़ा हैं | आज भी गुरु का महत्व सर्वोपरि हैं | विस्तार से जाने इस कलयुग में भी गुरु का स्थान श्रेष्ठ हैं |

प्राचीन काल मे कोई विद्यालय (school) कॉलेज नहीं होते थे, उस समय विद्यार्थी ऋषियों के आश्रम मे रहकर विद्या ग्रहण करते थे. उस समय किसी भी विद्यार्थी के जीवन का एक पहर उनके गुरुओ के आश्रम मे ही बीतता था, तो उनकी उनके गुरुओ के लिये एक अलग श्रद्धा तथा सम्मान होता था, तो वे आषाढ़ मास की पुर्णिमा को गुरु पुर्णिमा के रूप मे मानते थे तथा इस दिन गुरु पूजा का बड़ा महत्व था, तथा इस आषाढ़ मास की पुर्णिमा के दिन गुरु पूजा का विधान आज तक चला आ रहा है.

इसी दिन महाभारत के रचीयता महर्षि वेद व्यास का जन्म भी हुआ था, तो उन्ही के नाम पर इसे व्यास पुर्णिमा (vyasa poornima) भी कहा जाता है. वैसे वेद व्यास जी का असली नाम कृष्ण  द्वैपयान व्यास था, वे संस्कृत के विद्वान थे, व्यास मुनि ने ही चारो वेदों को रचा था, इसलिये उन्हें वेद व्यास कहा गया | यही आषाढ़ मास की पुर्णिमा के दिन कबीरदास जी के शिष्य घासीदास जी का भी जन्म दिन होता है.
गुरु वह व्यक्ति है जो ज्ञान की गंगा बहाता है तथा अपने शिष्यो को अंधकार से प्रकाश की और ले जाता है . प्राचीन काल मे जब शिष्य गुरु के आश्रम मे रहकर निशुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे, तो वे इसी दिन अपने गुरु को उनकी इच्छा अनुसार गुरु दक्षिणा देते थे तथा इस दिन को एक उत्सव की तरह मनाते थे. प्राचीन काल मे गुरु की आज्ञा भगवान का आदेश होती थी | इसके कई प्रमाण है परंतु सबसे अच्छा उदाहरण एकलव्य का है, जिसने गुरु द्रोण की मूर्ति रखकर शिक्षा गृहण की थी, परंतु फिर भी गुरु द्रोण के गुरु दक्षिणा मे दाए हाथ का अंगूठा मांगने पर बिना किसी संदेह के तुरंत अपना अंगूठा काटकर दे दिया था. हलाँकि आज गुरु की आज्ञा का पालन एकलव्य की तरह विरले ही कोई करता हो, परंतु गुरु पुर्णिमा के दिन उत्सव मनाने का यह रिवाज आज तक चला आ रहा है. गुरु पुर्णिमा के दिन कई पारंपरिक रूप से चल रहे संस्थानो मे आज भी गुरु का सम्मान किया जाता है,गुरु पुर्णिमा के दिन कई पारंपरिक रूप से चल रहे संस्थानो मे आज भी गुरु का सम्मान किया जाता है, कई जगह इस दिन धार्मिक आयोजन किए जाते है | अपने गुरुओ के साथ पवित्र नदियो मे स्नान किया जाता है तथा कई जगह तो मेलो का आयोजन किया जाता है .

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